THE BASIC PRINCIPLES OF SHIV CHAISA

The Basic Principles Of Shiv chaisa

The Basic Principles Of Shiv chaisa

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स्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥

दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥

त्रयोदशी व्रत करै हमेशा। ताके तन नहीं रहै कलेशा॥

दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥

O Superb Lord, consort of Parvati You happen to be most merciful . You always bless the bad and pious devotees. Your lovely type is adorned While using the moon on your own forehead and on your own ears are earrings of snakes' hood.

अर्थ: हे प्रभू आपने तुरंत तरकासुर को मारने के लिए षडानन (भगवान शिव व पार्वती के पुत्र कार्तिकेय) को भेजा। आपने ही जलंधर (श्रीमद‍्देवी भागवत् पुराण के अनुसार भगवान शिव के तेज से ही जलंधर पैदा हुआ था) नामक असुर का संहार किया। आपके कल्याणकारी यश को पूरा संसार जानता है।

अर्थ: हे नीलकंठ आपकी पूजा करके ही भगवान श्री रामचंद्र लंका को जीत कर उसे विभीषण को सौंपने में कामयाब हुए। इतना ही नहीं जब श्री राम मां शक्ति की पूजा कर रहे थे और सेवा में कमल अर्पण कर रहे थे, तो आपके ईशारे पर ही देवी ने उनकी परीक्षा लेते हुए एक कमल को छुपा लिया। अपनी पूजा को पूरा करने के लिए राजीवनयन भगवान राम ने, कमल की जगह अपनी आंख से पूजा संपन्न करने की ठानी, तब आप प्रसन्न हुए और उन्हें इच्छित वर प्रदान किया।

शंकर सम्मुख पाठ सुनावे ॥ जन्म जन्म के पाप नसावे ।

जय जय तुलसी भगवती सत्यवती सुखदानी। नमो नमो हरि प्रेयसी श्री वृन्दा गुन खानी॥

सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनें।

स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु अब संकट shiv chalisa lyricsl भारी॥

जीत के लंक विभीषण दीन्हा ॥ सहस कमल में हो रहे धारी ।

अर्थ: हे अनंत एवं नष्ट न होने वाले अविनाशी भगवान भोलेनाथ, सब पर कृपा करने वाले, सबके घट में वास करने वाले शिव शंभू, आपकी जय हो। हे प्रभु काम, क्रोध, मोह, लोभ, अंहकार जैसे तमाम दुष्ट मुझे सताते रहते हैं। इन्होंनें मुझे भ्रम में डाल दिया है, जिससे मुझे शांति नहीं मिल more info पाती। हे स्वामी, इस विनाशकारी स्थिति से मुझे उभार लो यही उचित अवसर। अर्थात जब मैं इस समय आपकी शरण में हूं, मुझे अपनी भक्ति में लीन कर मुझे मोहमाया से मुक्ति दिलाओ, सांसारिक कष्टों से उभारों। अपने त्रिशुल से इन तमाम दुष्टों का नाश कर दो। हे भोलेनाथ, आकर मुझे इन कष्टों से मुक्ति दिलाओ।

लिङ्गाष्टकम्

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